महतारी शब्द के अर्थ ला संसार के जम्मो जीव-जन्तु अउ परानी मन हा समझथें। महतारी के बिन ए संसार के कल्पना करना बिलकुल कठिन हे। महतारी हमन ला सिरिफ जनम भर नइ देवय बलकि करम ला घलाव सिखाथे। वो करम जेखर बिन हमर एक पाँव रेंगना असंभव होथे। मया पियार दुलार के संगे-संग अमोल संस्कार ला घलो सिखोथे। जिनगी जीये के बीज बोथे। नौ महीना लइका ला अपन ओदरा मा बोह के सरी बुता-काम ला सरलग करइया एके झन जीव ए जगत मा हे जेखर नाँव हरय महतारी हावय। वो ए पीरा ला अपन लइका के मुसकान मा निछावर करइया अद्भुत जीव हरय। महतारी, अम्मा, माँ, माई, दाई ए सब एके झन के मया भरे नाँव हे। अपन परान ले जादा अपन लइका के परान ला जादा कीमती समझइया महतारी हा होथे अउ कोनो हा नइ होय। महतारी के मया भरे अँचरा हा महतारी के परिभासा होथे। महतारी हा जिनगी देवइया देवता हरय, एखरे सेती महतारी के मान सरग ले बढके हावय। देवता घलाव मन अपन जनम देवइया दाई के माँथ नवाथें। महतारी वो मया-दया के फुलवारी हरय जेमा के फूल कभूच नइ मुरझावय। महतारी ममता के मूरत हरय। महतारी के ममता हा वो महासागर हरय जौन कभू नइ अटावय।
वइसे तो अतका जादा महतारी उपर लिखे/कहे जा चुके हे मोर लिखना हा काँहीं नइ हे उंखर आगू मा। कोनो महतारी ला देवी ता कोनो महतारी ला भगवान के सरूप मानथें। इंखर कहना हा कोनो गलत घलाव नइ हे। महतारी हा घर चलाथे ता देवी लछमी होते, रँधनी घर मा अन्नपूर्णा होथे, अपन लोग-लइका ला सिखाथे-पढाथे ता सरसती सरूप होथे अउ बिपत ले जूझे बर देवी दुरगा होथे। जइसन समे परथे तइसन रूप मा महतारी हा अपन आप ला रंगथे अउ दिखथे। भगवान ला तो कोनो देखे नइ हे फेर मोला अइसन लागथे के भगवान हा जरुर महतारी बरोबर होही जौन बिना सुवारथ के सबके सेवा करथे। धरती मा भगवान के कमी ला महतारी हा अपन इही सेवा भाव ले पूरा करथे। महतारी बङे फजर उठ अधरतिया के होवत ले बिन थके-हारे अपन परवार के सुख-सान्ति बर समरपित हरिथे। घर-दुवार, खेत-खार, आफिस अउ लइका-सियान के सकला-जतन, देख-रेख एके झन महतारी हा पूरा करे मा अकेल्ला समरथ रथे। वोला काखरो मदद के जरुरत नइ परय फेर सबला महतारी के मदद के जरुरत खच्चित परथे। कोई भी जिमेदारी होवय वोला ईमानदारी ले निभाय मा महतारी के बरोबरी कोनो नइ कर सकँय। तियाग-तपस्या,मया,ममता करुना, दया,जप-तप,भक्ति अउ बिसवास के जीयत मूरती होथे महतारी हा। महतारी के बखान ला शब्द मा करना असंभव हावय। ए हा वो जीवनदायिनी हवा हरय जेखर बिन संसार के एको जीव जिन्दा एक छिन नइ रही सकँय।
महतारी हमर रूप रंग अउ व्यकितत्व के चिन्हारी होथे,एखर बिन ए जग मा हमर अवतरन अउ पहिचान नइ हो सकय। दाई हमर हिरदे ले जुरे रथे। वो हमर छँइहाँ बरोबर सदा आगे-पाछू रहिथे। सुख-दुख, बने-गिनहा बेरा मा हमर संग मा हमर हाथ धर के खङे रथे। दाई हमला कभू अकेल्ला नइ छोंङय भले हमन वोला अकेल्ला छोङ देथन। जिनगी के इस्कूल के पहिली गुरु हमर महतारी हा होथे जौन हा हमला जीये के सहीं अन्दाज सिखाथे। अपन सिखोना ला लइका कतका अउ कहाँ तक पालन करथे एकरो घरी-घरी धियान देथे दाई हा। महतारी अपन अनुभव के खजाना ला फोकट मा अपन लइका उपर लुटाथे ताकि लइका उपर काँही अलहन झन आवय। दाई ला सब जिनिस पता रहिथे के मोर लइका बर का सहीं हे अउ का गलत हे। एकरे सेती महतारी हा सबले जादा समे अपन घर-परवार ला देथे। हमर महतारी हमर मन के सबले बङे हितवा अउ प्रशंसक होथे। वो हा अपन लइका-सियान अउ घर के उपलब्धि मा सबले जादा खुश होथे अउ ओखर अथक प्रचार-प्रसार घलाव करथे। दाई हमला सदा सत मारग मा चले के सुग्घर सीख देथे जिनगी भर। आसा अउ बिसवास के पाठ हर बखत पढाते महतारी हा। महतारी के सिखोना ही जिनगी के डहर ला सरल अउ सुग्घर बनाथे। दाई जीयत भर इही आस मा जीथे के मोर लइका मोर बताय रद्दा मा रेंगय अउ दुनिया मा नाँव कमाय। दाई कभू नइ चाहय के मोर लइका हा गलत संगत मा परके गलत करम मा बूङय। एकरे सेती दाई हा रात-दिन चोबीसो घन्टा लइका के संसो अउ आरो करत रथे। लइका ला आँखी-आँखी देखत रहीथे।
महतारी के महिमा ला भगवान घलाव पार नइ पा सके हे। बङे-बङे गियानी-धियानी, संत-महात्मा अउ बिद्वान मन घलाव दाई के हिरदे ला समझे मा फेल खागें। दाई जतका कोंवर होथे ओतके कठोर घलाव होथे। महतारी शब्द हा एकठन जादू बरोबर लागथे जेखर नाँव लेते साठ सबो दुख-पीरा हा गायब हो जाथे। अइसे नो हे के महतारी एक अबूझ पहेली हरय। महतारी ला दिल मा जघा देले सबो अपने आप समझ आथे फेर दिमाग मा राखे मा अउ मुसकुल हो जाथे। ए पबरित रिश्ता के डोर दिल ले जुरथे ता जादा मजबूत होथे अउ दिमाग ले जोरे मा ओतके कमजोर होथे। महतारी के ममता अपन लइका के जतन मा जिनगी भर मासूम रही जाथे अउ लइका कब बाढथे पता नइ चलय। इही कारन महतारी बर ओखर बुढुवा बेटा घलाव नान्हे लइका लागथे। इही महतारी के ममता के आरुग भाव हरय जौन हा जिनगी मा बर के छँइहाँ बरोबर जुङवास करथे। दाई ले ए जिनगी सबल बनथे।
महतारी के महत्तम जिनगी मा उही बने बता सकथे जेखर जिनगी मा महतारी के कमी हावय। जेवन के महत्तम ला अघाय मनखे हा जादा बने ढंग ले बता सकय जतका लाँघन मनखे बता सकथे। दाई हा दरद के नाँव हरय फेर लइका ला पखरा कस पोठ बना के जिनगी के रद्दा मा रेंगाथे। महतारी ले हमर चिन्हारी हे, ए जिनगी हा महतारी के अभारी हे। परवार मा मेल-मिलाप के मजबूत पुलिया महतारी हा होते,एखर बिन परिवार बगर जाथे। महतारी सबो ला एकमई राखथे अपन मया, ममता अउ दया ले। आज जरुरत हे महतारी के मान अउ महत्तम ला समझे के। जइसे रुख-राई मन हमर बिन जी सकथे फेर हमन बिन रुख-राई के एक छिन नइ जी सकन वइसने महतारी के बिन हमन नइ जी सकन, महतारी हमर बिन जी सकथे। महतारी के जघा कोनो आसरम मा नइ हे हमर घर-अँगना,हमर हिरदे मा हावय। महतारी बिन जिनगी के कोनो मोल नइ हे, कोनो चिन्हारी नइ हे।।
कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड~भाटापारा (छ.ग)
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